जब शहर में भीड़ हो इतनी
की जितनी रोज रहती है
शोर हो इतना
की जितना रोज होता है
भूख औ बीमारियों से
मरते हों इतने लोग
की जितने रोज मरते हैं
जलसे में - जुलूसों में
लोग इतने कुचल जाते हों
की जितने रोज कुचलते हैं
यहाँ तक की गावों में
उदासी इतनी हो
की जितनी रोज रहती है
तब भी किसी के पूछने पर
एक सभ्य जिम्मेदार
नागरिक की तरह
आप बोलेंगे -
कोई ख़ास बात नहीं, सब ठीकठाक है !
सही है, यही कहेंगे।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आर आर पाटिल की महाराष्ट्र गृहमंत्री पद की कुर्सी इसी चक्कर में तो गई थी।
ReplyDelete