साथ-साथ

Thursday, February 25, 2010

मर्ज हुआ ऐसा हुआ

ऐसी उठापटक है, ऐसा कौवा - कांव.
नौका में जल भर गया पानी में है नाव..

जर्जर नौका पर चले महगाई की धार.
बीच भंवर में काम क्या आएगी पतवार..

आपस में चलती रही फूट फूट औ फूट.
डाकू- चोर मिले रहे लूट लूट औ लूट ..

बिन बरसे बादल गए, गए महीनों- साल.
देश तरक्की कर गया अभी आप बेहाल..

मर्ज हुआ ऐसा हुआ, जिसके सभी मरीज.
डाक्टर भी बीमार है, घर बैठे तू खीझ ..

Tuesday, February 23, 2010

धूप में घुलती सिसकी

धूप निकलती है
बुधुआ बखरी के गोरू
सिवान की ओर हांकता है
जोखू सँभालते हैं फावड़ा
और मंगरी उठाती है खुरपी
इतने में
छः साल की रधिया के सामने से
कलेवा की बासी रोटी
झपट कर भागती है
बिल्ली

रधिया रोने लगती है
तभी उसके नकबहने चेहरे पर
पड़ता है
मंगरी का झन्नाटेदार झापड़

वह एकबारगी घिघिया उठती है
जोखू मंगरी को गरियाते हैं
और साली छिनाल तक कह जाते हैं

फिर दोनों मुंह फुलाये
मालिक के खेत का रास्ता
पकड़ते हैं
रधिया की सिसकी
धीरे - धीरे
धूप में घुलती जाती है
धूप तेज होती है
और गर्मी चढ़ती जाती है.

Friday, February 19, 2010

ग्लोबल गाना

देखो भाई, ग्लोबल है जमाना
बेघर है सुख और दुःख भी बेठिकाना

दरजी को दर नहीं
गाँव को नहर नहीं
कितनों को घर नहीं
कुर्सी को डर नहीं
रूपया भी डूब गया
और हाय डालर नहीं !
टीवी के परदे पर बेपर्दा तराना
देखो भाई, ग्लोबल है जमाना !

पीने को पानी नहीं
किस्से में नानी नहीं
फिलम में कहानी नहीं
गाने में रवानी नहीं.
शहर स्वाभिमानी नहीं
छोड़ जाऊं मैं कोई
ऐसी निशानी नहीं !
लुटेरों की मजलिस दरोगा बिना थाना
देखो भाई, ग्लोबल है जमाना !

हवा है अमेरिका
पानी जापान है,
बाज़ार का तिलिस्म है
बेसुध इन्सान है,
यूरोप की सड़कों पर
सोया हिंदुस्तान है !
जंगल है - जंगल में
नहीं कोई जान है,
जहाँ भी मशीन है
वहीँ भगवान है !
भूसी ही भूसी है फसल बिना दाना
देखो भाई, ग्लोबल है जमाना !

नाव-पतवार है
मगर कोई नदी नहीं,
भूख से जो मर गए
उनकी कोई सदी नहीं,
चिड़ियों से भरा-भरा
कोई आसमान नहीं,
सुन्न है दिमाग और
देह में तूफ़ान नहीं,
अंधों का जमघट है रोशन जिमखाना
देखो भाई, ग्लोबल है जमाना !

बात में कड़क नहीं,
बांह में फड़क नहीं,
सीने में धड़क नहीं.
अरे अरे भड़क नहीं
घर पहुंचाए ऐसी
बनी कोई सड़क नहीं
बेघर है सुख और दुःख भी बेठिकाना
देखो भाई, ग्लोबल है जमाना !

Thursday, February 18, 2010

इतनी असरदार धूप

धूप इतनी असरदार तो है ही
कि उम्र को लगे
और सपने जगा दे

यूं ही नहीं
फैक्टरी में ईंट ढोते-ढोते
सुस्ताने के वक्त
पसीने में तर-ब-तर
मनोहर ने खाया था पान
और बसंती मुस्कुराई थी

बूढ़े हरखू की
जवान बेटी की
रात-दिन की सूखी चिंता
आखिर ख़त्म हो गयी

हरखू सोचते हैं
सुस्ताने के वक्त
तर-ब-तर पसीने में
बेटी थी - पराई थी
और, संतोष की सांस लेते हैं

धूप इतनी असरदार तो है ही !

Wednesday, February 17, 2010

धूप में नहा गया

वह धूप में
नहा गया
पसीने में नहा गया
सराबोर
उसे प्यास लगी
बिलकुल ठन्डे पानी की
उसे घड़ा याद आया
उसे याद आया कि
भैंसें किस तरह
आँखें बंद, मुंह ऊपर किये
समूचा धड़, डूब गयी होंगी पोखरी में
उसने पीपल को याद किया
और बंसखार को भी
उसने माथा पोंछा - कनपटी तक
और तेज - तेज चलने लगा
घर की ओर
वह धूप में
नहा गया
सराबोर.

Saturday, February 13, 2010

वेलेंटाइन डे : एक बेरोजगार युवक का प्रेम

न जाने कितने रात-दिन के बाद
जब कि अंधकार और जिन्दगी में
फर्क कर पाना भी मुश्किल हो रहा था
हमारे लिए
मैंने उससे कहना चाहा- प्यार
और कह गया- तुम उदास क्यों हो ?

दरअसल
मुझे रौशनी की जरूरत थी
और उसे भी

जरूरत थी कि
हम साथ-साथ उजाला पा सकें
अँधेरी गलियों में गुजरते हुए
एक - दूसरे का हाथ थामे

साथ-साथ यह जानते हुए
कि अँधेरे से रौशनी के दरम्यान
कितना फासला है
और कितनी थकान

उसने मुझसे कहना चाहा- प्यार
और कह गयी- तुम्हारी नौकरी का
क्या हुआ, इस बार ?

मैंने कहा- जिन्दगी...
वह बोली- माँ बीमार है और उसे
मेरी उमर की भी बड़ी चिंता है
मैंने कहा- चलो, थोड़ी देर यूं ही
घूम लेते हैं पार्क से आगे वाली सड़क तक
उसने कहा- क्या तुम थक नहीं गए हो ?

मैंने उससे कहना चाहा प्यार
और कह गया उदास क्यों हो !     

Friday, February 12, 2010

पत्थर फेंका ताल में

देख लिए हम रात भी और अँधेरा घुप्प
देखे बरगद-डाल पर बैठे उल्लू चुप्प .

अपनी मुट्ठी तान तू फेंक हाथ की रेत
'अधचर खेत बचाइले, कर ले मूरख चेत.

पत्थर फेंका ताल में लगा कांपने नीर
शानदार प्रतिमा हिली रही अटारी तीर.

इसमें अचरज क्या भला पत्थर में है जान
खुले हाथ में कुछ नहीं, अब तू मुट्ठी तान.

गुलमोहर की छाँह भी देती है अब आंच
वह दिन जल्दी आयगा जब चटखेगा कांच.

Wednesday, February 10, 2010

जलते तवे पर

रोटी धुंआ देने लगी
जलते तवे पर.
लाचार आंसू चू पड़े
जलते तवे पर.

वह जेब खाली मर्द
जब घर में घुसा,
गाली - हजारों पड़ गईं
जलते तवे पर.

सपने हुए काफूर
फिर उसके सभी,
उसने हकीकत देख ली
जलते तवे पर.

क़ानून का पोथा
भला किस काम का,
ला फूँक दूं उसको
इसी जलते तवे पर.

किस पर भरोसा करेगा
यह आदमी,
कौन खायेगा कसम
जलते तवे पर !

Thursday, February 4, 2010

राज ठाकरे - उद्धव - बाला !

राज ठाकरे - उद्धव - बाला !

चाचा चोर- भतीजा पाजी,
लोकतंत्र में ये हैं नाज़ी,
हिटलर के ये नव अवतार,
तोड़फोड़ - सेना - अखबार,

तीनो मिलकर बना रहे हैं
महाराष्ट्र को नरम निवाला !

राजनीति के पाकेटमार,
अव्वल धूर्त और मक्कार,
स्वयं स्वघोषित पहरेदार,
इनको लानत, सौ धिक्कार,

सागर तट पर कुँए के मेढक
पड़ा हुआ है अकल पे ताला !

Wednesday, February 3, 2010

कुर्सी की माया अगम

धवल वस्त्र धारण किये नेता चतुर महान.
पढ़े गरीबी - भुखमरी लिए मधुर मुस्कान..

दिनभर जनता - जाप कर होटल आधी रात.
चार समर्थक साथ में, यह अन्दर की बात..

विकट आपदा आ गयी ऐसा पड़ा अकाल.
नेता-अफसर-सेठ गण करते गोटी लाल..

इस अकाल ने कर दिया सबकुछ बंटाधार.
किस चुनाव की चासनी ए हजूर सरकार..

दर्रा फाड़े खेत हैं, जले - भुने से गाँव.
नेताजी मत आइये होगा ही पथराव..

इस घनघोर अकाल में सूख गए सब ताल.
मंत्रीगण बेचैन हैं चले न बगुला - चाल..

कोटा - परमिट बांटिये नाते - रिश्तेदार.
कुर्सी की माया अगम, दुर्गम है सरकार..

Monday, February 1, 2010

क्या कहूं

आपको मैं क्या कहूं
या दिल कहूं - दौलत कहूं,
आप ही कहते रहें
मैं किस तरह बस चुप रहूँ !

यह मुनासिब नहीं लगता
धूप के इस गावं में
तप रहे हों जब सभी
मैं आपकी छाया सहूँ !

आपको जुकाम है
हाय यह नाजुक मिजाजी
ठण्ड से ठिठुरी हुई
यह दास्ताँ क्या मैं सहूँ !

खूब फरमाया
तुम्हारे बाग़ की खुशबू लिए
खिड़कियों के रास्ते से
जुल्फ छूकर मैं बहूँ !