जब आप वृक्ष के बारे में सोचते हैं
तब होते हैं वृक्ष की ही तरह अकेले
हवा की तरह निस्पंद
और वक्त गुजरता जाता है ।
यह होती है वक्त की मार
जब आपको धकियाकर
एक किनारे किसी अस्वीकृत पेड़ की तरह
छोड़ दिया गया होता है - भरे मौसम में ।
गहरी छटपटाहट लिए
दूर से देखते हैं आप
एक बहती हुई नदी
और भीतर का रस - स्रोत
सूखता चला जाता है ।
अपनी छाया से बेखबर
एक पेड़ के उखड़ने की शुरुआत
ठीक यहीं से होती है,
आख़िर कहाँ नहीं हैं हरियाली के दुश्मन !
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