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Monday, September 12, 2011

चिट फंडन के मार बजीफा करें क्रांति रंगीन

कवि संजय चतुर्वेदी की लोक रंग में रंगी और व्यंग्य के रस में  पगी ये कवितायेँ आज की वस्तुस्थितियों पर गजब की टिपण्णी करती हैं. इन कविताओं में जो विकट उत्पात है, क्या यह आज के बाजारवादी वक्त का उत्पात  नहीं है ?

॥ अलप काल बिद्या सब आई॥

ऐसी परगति निज कुल घालक।
काले धन के मार बजीफा हम कल्चर के पालक,
एक सखी सतगुरू पै थूकै, एक बनी संचालक,
अलप काल बिद्या सब आई, बीर भए सब बालक॥

॥ कलासूरमा सदायश: प्रार्थी॥

कातिक के कूकुर थोरे-थोरे गुररत
थोरे-थोरे घिघियात फंसे आदिम बिधान में।

थोरे हुसियार थोरे-थोरे लाचार
थोरे-थोरे चिड़ीमार सैन मारत जहान में।

कोऊ भए बागी कोऊ-कोऊ अनुरागी
कोऊ घायल बैरागी करामाती खैंचतान में।

जैसी महान टुच्ची बासना के मैया-बाप
सोई गुन आत भए अगली संतान में।

॥ कालियनाग जमुनजल भोगै॥

आलोचक हैं अति कुटैम के खेंचत तार महीन।
कबिता रोय पाठ बिनसै साहित्य भए स्रीहीन।
चिट फंडन के मार बजीफा करें क्रांति रंगीन।
कालियनाग जमुनजल भोगै खुदई बजावै बीन॥

॥ ऊधौ देत सुपारी॥

हम नक्काद सबद पटवारी।
सरबत सखी निजाम हरामी हम ताके अधिकारी।
दाल-भात में मूसर मारें और खाएं तरकारी,
बिन बल्ला कौ किरकिट खेलें लंबी ठोकें पारी,
गैल-गैल भाजै बनवारी ऊधौ देत सुपारी॥

Tuesday, September 6, 2011

कुछ और संवाद कथाएं


संवेदनशील लेखक-पत्रकार रत्नेश कुमार रहने वाले बिहार के हैं और नौकरी गुवाहाटी में करते हैं। नेकदिल इंसान हैं और गहरी सामाजिक समझ है उनके पास। उन्होंने अपने ढंग की विधा विकसित की है- संवाद कथा। ये संवाद कथाएं लगभग सूक्तियों जैसा असर छोड़ती हैं। प्रस्तुत हैं उनकी कुछ संवाद कथाएं...

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- रिश्वत से अपना रिश्ता रक्त का है।

- अपना भक्त का।

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- गांधी प्राणी के डॉक्टर हैं।

- माक्र्स?

- प्रणाली के।

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- भोजपुरी हिंदी की अनपढ़ बहन है।

- हिंदी?

- संस्कृत की सातवीं पास बेटी।

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- सच बोलो न, बहुत सुख मिलता है।

- सुविधा तो झूठ बोलने से मिलती है।

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- कछुआ और खरगोश की कहानी पढ़ी है?

- कलम और कंप्यूटर को देखकर याद आ रही है, न।

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- भय के हाथ में कुछ था।

- हां, भगवान का पता।

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- पति-पत्नी में प्रेम कम होता है।

- अधिक क्या होता है?

- पैंतरा।

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- इस पथ पर जब देखो- नो एंट्री।

- महात्मा गांधी पथ है, न।

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- हंसी और मक्कारी सौत थीं।

- थीं यानी?

- आज सखी हैं।

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- वर जातिवाचक संज्ञा है, न?

- नहीं, द्रव्यवाचक संज्ञा।

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- वतन और वेतन दोनों में एक चुनने को बोला जाए तो लोग बोलेंगे वतन, किंतु लेंगे वेतन।

- यही तो अपना चरित्र है, मित्र।

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- एक भ्रष्ट व्यक्ति : बिना अतिरिक्त मन रिक्त रहता है।

- दूसरा भ्रष्ट व्यक्ति : तिक्त भी।

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- हिंसा की हंसी सुन रहे हो, न?

- मैं तो अहिंसा की रूलाई भी सुन रहा हूं।

Sunday, September 4, 2011

रत्नेश कुमार की कुछ संवाद कथाएं

संवेदनशील लेखक-पत्रकार रत्नेश कुमार रहने वाले बिहार के हैं और नौकरी गुवाहाटी में करते हैं। नेकदिल इंसान हैं और गहरी सामाजिक समझ है उनके पास। उन्होंने अपने ढंग की विधा विकसित की है- संवाद कथा। ये संवाद कथाएं लगभग सूक्तियों जैसा असर छोड़ती हैं। प्रस्तुत हैं उनकी कुछ संवाद कथाएं...

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- हिंदू दो तरह के होते हैं।
- दो तरह के?
- हां, एक को भारत का हारना बुरा लगता है और दूसरे को पाकिस्तान का जीतना।
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- श्रमिक आदम की औलाद है।
- पूंजीपति?
- आमदनी की।
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- बंदूक से दुनिया छोटी होती है।
- बांसुरी से बड़ी।
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- दिल्ली दारू है।
- दिसपुर?
- दारू का असर।
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- तुमने हरिश्चंद्र का साथ क्यों छोड़ दिया?
- वह हमेशा सच बोलता है।
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- एक ऐसा शब्द बताओ, जिसके सामने हर शब्द छोटा और खोटा हो?
- प्रेम।
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- व्यक्ति पैर से चलता है।
- परिवार?
- प्रेम से।
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- प से पति होता है।
- पतित भी।
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- अपने भारत में संबंध के अनुसार अभिवादन है।
- उनके इंडिया में समय के अनुसार।
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- पत्नी जीवन है।
- प्रेमिका?
- जीवन का स्वाद।
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- महिला भी महिला का अपहरण करती है।
- लक्ष्मी ने सरस्वती का अपहरण कर ही लिया है।
क्रमश: