कहता हूँ गानेवाली बुलबुल
तभी एक पिंजरा लिए
बढ़ आते हैं हाथ
मैं कहता हूँ - कोई भी एक चिड़िया
इतने में ही
वे संभाल लेते हैं गुलेल
एक गहरी चीख बनकर
रह जाती है कविता
शान्ति के नाम पर
पता नहीं वे किसके विरुद्ध
अभी तक लड़ते जा रहे हैं
एक युद्ध श्रृंखला
कहता हूँ गानेवाली बुलबुल
तभी एक पिंजरा लिए
बढ़ आते हैं हाथ
मैं कहता हूँ - कोई भी एक चिड़िया
इतने में ही
वे संभाल लेते हैं गुलेल
एक गहरी चीख बनकर
रह जाती है कविता
शान्ति के नाम पर
पता नहीं वे किसके विरुद्ध
अभी तक लड़ते जा रहे हैं
एक युद्ध श्रृंखला
मुझसे टकराया मिट्टी का कच्चा घड़ा
और मैं टूट कर बिखर गया
एक हहराती नदी
अचानक मुझे भिगो गयी नीद में
आज तक गीले हैं
मेरे कपड़े
मैं कहाँ सुखाने जाऊं इन्हें
क्या बीती सदी के फ्रीज में
जमाई हुई बर्फ हूँ मैं
जिसे पिघलना है
अब नई सदी की धूप में .