साथ-साथ

Thursday, November 26, 2009

अमरता

है तो मिट्टी की ही मूरत

कच्ची मिट्टी की ।

उम्र की धुप में तपी

दुखों की आंच में पकी

है तो मिट्टी की ही मूरत !

यह आपका है प्यार

की लगता है

रंग - रोगन लगने से आया है

इसमे निखार,

वरना क्या है की

एक ठोकर में टूट सकती है यह

या गलना ही है इसे

किसी के आंसुओं में भीगकर ।

है तो मिट्टी की ही मूरत

कच्ची मिट्टी की ।

इसके बाहर भी है क्या कोई अमरता !

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