साथ-साथ

Friday, November 27, 2009

चहरे खुली किताब

अक्षर - अक्षर भूख है शब्द - शब्द है प्यास ।

यह कविता कैसे लिखे कवि की कलम उदास । ।

वह अक्षर से दूर है लेकिन अर्थ करीब ।

उसकी कविता मैं लिखूं है वह बहुत गरीब । ।

मेरी कविता चीखती औ तू ढूंढें राग ।

तू पथराया बर्फ है इधर धधकती आग । ।

कविता में काबिल हुए धरे अजनबी भेष ।

भाषा के बहुरूपिये घूमें देश - विदेश । ।

शब्दों का जंजाल है उनका माया - जाल ।

जिस पर उन्हें गुरूर है जिसमें उन्हें कमाल । ।

आप लिखें समझें स्वयं अपनी ही मुस्कान ।

कैसी कविता आपकी कैसा भाषा - ज्ञान । ।

अक्षर - अक्षर में चमक चढ़ा हुआ हो आब ।

जीवन को पहचानिए चहरे खुली किताब । ।

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