है तो मिट्टी की ही मूरत
कच्ची मिट्टी की ।
उम्र की धुप में तपी
दुखों की आंच में पकी
है तो मिट्टी की ही मूरत !
यह आपका है प्यार
की लगता है
रंग - रोगन लगने से आया है
इसमे निखार,
वरना क्या है की
एक ठोकर में टूट सकती है यह
या गलना ही है इसे
किसी के आंसुओं में भीगकर ।
है तो मिट्टी की ही मूरत
कच्ची मिट्टी की ।
इसके बाहर भी है क्या कोई अमरता !
बहुत उम्दा भाव!!
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