साथ-साथ

Wednesday, November 25, 2009

पाजी बच्चा

एक बच्चा है मेरे सीने में

जो हर वक्त बेचैन किए रहता है मुझे

जब - जब भी किया करता हूँ कोशिश

की सुलाकर उसको

मैं भी बड़ा हो जाऊं

उस वक्त मुझे याद करा देता है वो

माँ के पसीने की महक

महक वह की जो छातियों के दूध के संग

मिलके मेरी जिह्वा पर स्वाद बनके बैठी है

महक वह की जिसे चाहता हूँ लफ्ज की शक्लें देना

महक वह की जो आज तलक

उतर न पाई मेरी भाषा में ।

एक बच्चा है मेरे सीने में

जो हर वक्त बेचैन किए रहता है मुझे

बड़े बेमन से पढ़ता है दुनिया का ककहरा बच्चा

और रह - रहके उबासियाँ लेता

तरक्की के पाठ सीखने के दौरान

उसका दिमाग भन्ना जाता है -

लड़ाइयों, नफरतों, कुनबापरस्ती, धोखा-फरेब, छीनाझपटी से

सजी - धजी दुनिया

की इस दुनिया के सारे पेच और परतों को खोलकर

किसी खिलौने को पुर्जा - पुर्जा कर देने की तरह

इसकी दिल फरेबी को तार - तार करने के फेर में

किसी मौके की तलाश में वह रहता है ।

इस जिद्दी बच्चे को संभालना मुश्किल

की इसको पढ़ाना मुश्किल

की इसको बड़ा बनाना मुश्किल,

चाहता हूँ की सुला दूँ इसको

आपकी सोहबत में गुजारूं कुछ वक्त

आपको ऐसा न लगे की बैठी है मेरे भीतर कोई खब्त

रहना तो है मुझको भी इसी दुनिया में !

एक बच्चा है मेरे सीने में ...

गौर से देखिये वह आपका ही बच्चा है

की जिसकी पीठ पर है भारी बसते का बोझ

दुनिया भर की इबारतें सौंप की मानिंद

फन काढ़े फुंफकारती हैं जिस पर

वह बदहवास, घबराया - सा बच्चा

बड़ों की दुनिया के सबक से आजिज बच्चा

बड़ी तरकीब से घर और स्कूल की हिदायत से अलग

नामालूम - सा कुछ बसते में छुपाये रखता है ।

मैं बड़े गौर से देखता हूँ बसते को

लगता है की मेरा टूटा - फूटा बचपन

किसी बच्चे के बंद बसते में

की पेन्सिल बाक्स में

की किसी कागज़ की फालतू - सी पुडिया में

इक रोज़ अचानक मुझे मिल जाएगा

और स्कूल जाता कोई डरा - सहमा, उदास बच्चा

मुझे देख खिलखिलाएगा -

बज उठेंगी हजार घंटियाँ उसकी खिलखिलाहट में

की वह बच्चा हंसेगा एक दिन

बड़ों की बेवकूफी पर ।

एक बच्चा है मेरे सीने में ...

उसकी चाहत है की फूलों की कतारों में

खडा कर दे दुनिया के बड़े - बूढों को

और सब मिल के गायें नर्सरी राएम्

और वह बच्चा फेंककर अपना बस्ता

दूर खडा तालियाँ बजाये,

देखे की दुनिया ने नई करवट ली है -

गायब हैं मुखौटे सारे

और आदमी के चहरे पर

फकत आदमी का चेहरा है ।

अभी तो खैर मुखौटों की इस दुनिया में

मैं अक्सर उदास रहता हूँ -

ताकता हुआ बच्चे को स्कूल जाते हुए

बच्चा की जिसको बूढा बनाने की फ़िक्र

अभी से उसके माँ - बाप पे है तारी

क्या गजब की दुश्वारी की फिलवक्त वह बच्चा

घर और स्कूल से बाहर आख़िर कहाँ जाए ?

एक बच्चा है मेरे सीने में - पाजी बच्चा

किसी खिलौने से वह फुसलता ही नहीं

मुखौटा पहनने से इनकार की जिद पाले है

और हर वक्त बेचैन किए रहता है मुझे ।

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