साथ-साथ

Friday, November 20, 2009

औरत के बारे में

कविता में

चहचहाती हुई

दाखिल होती है

एक बच्ची ।

जैसे - जैसे उम्र बढ़ती जाती है

जवान होने तक

वह उदास हो जाती है ,

कविता में

औरत के आंसुओं से

भीगती रहती है

समूची गृहस्थी ।

फिर सारे तजुर्बे

काम आते हैं दुआओं के

और देवदूतों की बनाई हुई

इस दुनिया को कोसने में ,

कितने साध भरे होते हैं

औरत के कंठ से फूटे हुए लोकगीत

और कितनी शापग्रस्त होती है कविता

औरत के बारे में !

1 comment:

  1. देवदूतों की बनाई इस दुनिया को कोसने में ... बहुत सुन्दर कविता है अरविंद जी अपने अर्थ मे मुखर होती हुई ।

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