एक दिन वही बात होगी
जिसका खटका लगा हुआ है
मन में -
मेरे हाथ से छूटकर टूटेगा कोई कांच
अचानक एक दिन
तुम चले जाओगे तबादले पर
मुझे अकेला छोड़कर
मैं खामोशी में एक लम्बी साँस लूंगा ।
तब मैं किससे कहूंगा
तुम्हारे चले जाने के बारे में
किससे कहूंगा
हाथ से छूटकर
टूटा एक कांच
फिर एक खटका लगा रहेगा
की अगली डाक में मुझे मिलेगी तुम्हारी चिट्ठी
फिर एक कांच टूटेगा
अचानक हाथ से छूटकर
मैं लम्बी साँस लूंगा
और खोलकर पढूंगा तुम्हारी चिट्ठी -
यहाँ की यादों और वहाँ मन न लगने के बारे में
भई , नौकरियों में तो ऐसा होता ही है
साथ - साथ चाय - काफी पीते हुए
अचानक हाथ से छूटकर
टूटता है कांच ।
BAHUT HI BADHIYA...!ACHHE VICHAR HAI AAPKE.
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