साथ-साथ
Sunday, May 13, 2012
अदम गोंडवी की दो गजलें
धरती की सतह पर नाम से अदम गोंडवी की गजलों की किताब दिल्ली के किताबघर से अभी-अभी छपी है। जाहिर है, गजलें नई तो नहीं हैं लेकिन इन्हें बार-बार पढ़ा जा सकता है और यह किताब अपने संग्रह में रखी जा सकती है। पढि.ए इसी संग्रह की दो गजलें-
॥ एक॥
टीवी से अखबार तक गर सेक्स की बौछार हो
फिर बताओ कैसे अपनी सोच का विस्तार हो।
बह गए कितने सिकंदर वक्त के सैलाब में,
अक्ल इस कchche घड़े से कैसे दरिया पार हो।
सभ्यता ने मौत से डरकर उठाए हैं कदम,
ताज की कारीगरी या चीन की दीवार हो।
मेरी खुदूदारी ने अपना सिर झुकाया दो जगह,
वो कोई मजलूम हो या साहिबे-किरदार हो।
एक सपना है जिसे साकार करना है तुम्हें,
झोपड़ी से राजपथ का रास्ता हमवार हो।
॥ दो॥
मुक्तिकामी चेतना, अभ्यर्थना इतिहास की
ये समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की।
आप कहते हैं जिसे इस देश का स्वण्रिम अतीत,
वो कहानी है महज प्रतिशोध की, संत्रास की।
यक्ष-प्रश्नों में उलझकर रह गई बूढ़ी सदी,
ये प्रतीक्षा की घड़ी है क्या हमारी प्यास की।
इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आखिर क्या दिया,
सेक्स की रंगीनियां या गोलियां सल्फास की।
याद रखिए यूं नहीं ढलते हैं कविता में विचार,
होता है परिपाक धीमी आंच पर एहसास की।
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thoda vistar aur jagah se,padne me takleef hoti hai
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