साथ-साथ

Saturday, July 9, 2011

जब सब जयkaa र kaर रहे थे

kaवि श्रीkaanत वर्मा ke 1973 में छपे चौथे kaविता संग्रह जलसाघर kee kaई kaविताएं खासी चर्चित रही हैं। ऐसी ही एk kaविता पढि़ए, जो भीड़ ke जुनूनी मनोविज्ञान पर रोशनी डालती है...

प्रkरिया/श्रीkaanत वर्मा

मैं क्या kaर रहा था
जब
सब जयkaaर kaर रहे थे?
मैं भी जयkaaर kaर रहा था-
डर रहा था
जिस तरह
सब डर रहे थे।

मैं क्या kaर रहा था
जब
सब kaह रहे थे,
अजीज मेरा दुश्मन है?
मैं भी kaह रहा था,
अजीज मेरा दुश्मन है।

मैं क्या kaर रहा था
जब
सब kaह रहे थे,
मुंह मत खोलो?
मैं भी kaह रहा था,
मुंह मत खोलो
बोलो
जैसा सब बोलते हैं।

खत्म हो चुkee है जयkaaर,
अजीज मारा जा चुkaa है,
मुंह बंद हो चुke हैं।

हैरत में सब पूछ रहे हैं,
यह kaiसे हुआ?
जिस तरह सब पूछ रहे हैं
उसी तरह मैं भी,
यह kaiसे हुआ?

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