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Monday, July 11, 2011

जैसे कोई नींद में चलता हुआ व्यक्ति

युद्ध की व्यर्थता का गहरा एहसास कराती कवि श्रीकांत वर्मा की युद्ध नायक शीर्षक कविता का यह अंश पढ़िए. यह कविता उनके संग्रह जलसाघर में संकलित है .

युद्ध नायक / श्रीकांत वर्मा

जरूरी नहीं था युद्ध में मारा जाना
मगर मैं मारा गया युद्ध में!
युद्ध se मतलब युद्धभूमि में नहीं
बल्कि युद्ध se बचकर
सड़क पर चलता हुआ
सहस्रों सूर्यों के प्रकाश की तरह
एक बम के फटने se
मारा गया मैं!

iske पहले
कि मैं चीखकर कहता
हिरोशिमा अमर है
मैं मारा जा चुका था!
दबी की दबी रह गई चीख.
पीछे कुछ नहीं
केवल स्मृतियाँ हैं -
मूर्ति se मूर्ति
मनुष्य se मनुष्य
कविता se कविता
मोहनजोदड़ो se अब तक का
सिलसिला है.
युद्ध की अटूट एक श्रृंखला है!

अभी
कल ही की तो बात है
ढाका
एक मांस के लोथड़े की तरह
फेंक दिया गया था
दस हजार कुत्तों के बीच.

युद्ध कब शुरू हुआ था हिन्दचीन में?
ह्रदय में
दो करोड़ साठ लाख घाव लिए
वियेतनाम
बीसवीं शताब्दी के बीच se
गुजरता है!

अभी
कल ही की तो बात है
यूरोप
एक युद्ध se निकलकर
दूसरे युद्ध की ओर
इस तरह चला गया था
जैसे कोई नींद में चलता हुआ व्यक्ति!
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