साथ-साथ

Tuesday, June 28, 2011

इक नया जख्म मिला, एक नई उम्र मिली

पढि़ए कैफ भोपाली की यह एक और खूबसूरत गजल-

दाग दुनिया ने दिए, जख्म जमाने से मिले।
हमको तोहफे ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले॥

हम तरसते ही, तरसते ही, तरसते ही रहे,
वो फलाने से, फलाने से, फलाने से मिले॥

खुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता,
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले॥

कभी लिखवाने गए खत, कभी पढ़वाने गए,
हम हसीनों से इसी हीले-बहाने से मिले॥

इक नया जख्म मिला, एक नई उम्र मिली,
जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले॥

एक हम ही नहीं फिरते हैं लिए किस्सए-गम,
उनके खामोश लबों पर भी फसाने-से मिले॥

कैसे मानें के उन्हें भूल गया तू ऐ कैफ,
उनके खत आज हमें तेरे सिरहाने से मिले॥

1 comment:

  1. हम तरसते ही, तरसते ही, तरसते ही रहे,
    वो फलाने से, फलाने से, फलाने से मिले॥
    वाह वैसे तो हर शेर दाद देने लायक है। धन्यवाद बेहतरीन गज़ल पढवाने के लिये।

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