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Thursday, June 16, 2011

मरियम की शक्ल में, कभी सीता के रूप में

जिस देश में स्त्रियों को पूजने की बात कही जाती है, उसी देश में स्त्रियां तरह-तरह के अत्याचार-उत्पीडऩ की शिकार हैं- इससे बड़ा पाखंड भला और क्या हो सकता है? अगर कैफ भोपाली की तरह सभी लड़कियों को प्यार करते तो लिंगानुपात में असंतुलन क्यों आता? पढि़ए कैफ साहब की यह गजल...

खुशरंग तितलियां नजर आती हैं लड़कियां,
घर को बहिश्तजार बनाती हैं लड़कियां।

या रब तेरी जमीन की रुदाद क्या कहूं,
लड़के उजाड़ते हैं, बसाती हैं लड़कियां।

चावल हैं कहकशां से तो रोटी है चांद सी,
क्या-क्या हसीन चीजें खिलाती हैं लड़कियां।

स्कूल में भी करती हैं उस्तानियों के काम,
घर पर भी मां का हाथ बटाती हैं लड़कियां।

मरियम की शक्ल में, कभी सीता के रूप में,
सूरज हथेलियों पे उठाती हैं लड़कियां।

ऐ कैफ देवियां हैं खुलूसो-वफा की ये,
वो कौन है जिसे नहीं भाती हैं लड़कियां।

1 comment:

  1. ना स्त्रियों को पूजना सही ना उनके अत्याचार सही. स्त्रियों कि इज्ज़त कि जानी चाहिए.
    मरियम की शक्ल में, कभी सीता के रूप में,
    सूरज हथेलियों पे उठाती हैं लड़कियां।
    यह पंक्तियाँ अच्छी लगीं

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