साथ-साथ

Tuesday, June 14, 2011

आदमी फिरते हैं सरकारी बहुत!

यारी-दुश्मनी भी क्या जिंदगी की धूप-छांव की तरह है? कैफ भोपाली का एक शेर है- इधर आ रकीब मेरे, तुझे मैं गले लगा लूं/मेरा इश्क बेमजा था तेरी दुश्मनी से पहले। अब पढि़ए कैफ साहब की सलाहियत भरी यह छोटी-सी गजल...

मत किसी से कीजिए यारी बहुत
आज की दुनिया है व्यापारी बहुत!

वो हमारे हैं न हम उनके लिए,
दोनों जानिब है अदाकारी बहुत!

चार जानिब देखकर सच बोलिए,
आदमी फिरते हैं सरकारी बहुत!

कैफ साहब कोई मस्जिद देखिए,
मयकदे से हो चुकी ख्वारी बहुत!

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