साथ-साथ

Tuesday, April 19, 2011

एक फिल्मी गाना, जो कौमी तराना बन गया

1964 में आई थी एक फिल्म- हकीकत। इस फिल्म के लिए लिखा कैफी आजमी का एक नग्मा देखते ही देखते कौमी तराना बन गया। आज भी हर खास मौके पर यह गाना देशभर में गूंजा करता है-

कर चले हम फिदा जानो-तन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

सांस थमती गई, नब्ज जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया,
मरते-मरते रहा बांकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

जिंदा रहने के मौके बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वो जवानी जो खूं में नहाती नहीं,
आज धरती बनी है दुल्हन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफिले
फतह का जश्न इस जश्न के बाद है
जिंदगी मौत से मिल रही है गले,
बांध लो अपने सर से कफन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

खींच दो अपने खूं से जमीं पर लकीर
इस तरफ आने पाए न रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई,
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

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