साथ-साथ

Saturday, April 16, 2011

दीवाना पूछता है...

कैफी आजमी की पत्नी शौकत कैफी ने अपने एक लेख में एक घटना का जिक्र किया है, जिसमें कैफी के स्वभाव की झलक मिलती है- एक दिन हमारे घर में चोरी हो गई। तमाम बेडकवर, चादरें, कंबल चोरी हो गए। मुझे मालूम था कि चोर कौन है। एक चोर माली हमारे घर किसी प्रकार आ गया था। जब हमारे घर में निरंतर चोरियां होने लगीं और मुझे पता चला कि यह सारा काम उसी माली का है तो मैंने उसे निकाल दिया और एक दिन जब हम घर से बाहर गए हुए थे और घर खुला हुआ था तो अवसर पाकर वह माली फिर आया और घर के तमाम कंबल और चादरें उठा ले गया। जब मैंने कैफी से कहा कि तुम पुलिस में सूचना दो तो कहने लगे- देखो शौकत, बारिश होनेवाली है। उस गरीब को भी तो चादरें और कंबल की जरूरत होगी। उसके बच्चे कहां सोएंगे? तुम तो और खरीद सकती हो, लेकिन वह नहीं। मैंने अपना सिर पीट लिया। क्या जवाब देती।... अब पढि़ए कैफी की यह गजल-

क्या जाने किसी की प्यास बुझाने किधर गईं
उस सर पे झूम के जो घटाएं गुजर गईं।

दीवाना पूछता है यह लहरों से बार-बार
कुछ बस्तियां यहां थीं बताओ किधर गईं।

अब जिस तरफ से चाहे गुजर जाए कारवां
वीरानियां तो सब मेरे दिल में उतर गईं।

पैमाना टूटने का कोई गम नहीं मुझे
गम है तो यह कि चांदनी रातें बिखर गईं।

पाया भी उनको खो भी दिया चुप भी यह हो रहे
इक मुख्तसर-सी रात में सदियां गुजर गईं।

1 comment:

  1. न जाने ऐसा कब होगा कि उर्दू शायरी, ग़ज़लों में पिकासो जैसी फॉर्म तोड़कर आगे बढ़ने की हिम्मत दिखेगी...मैं कैफ़ी साहब की बहुत इज्ज़त करता हूँ लेकिन कहना ही पड़ता है कि अब यह पंक्तियाँ बॉलीवुड के काम की भी नहीं रहीं...!

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