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Sunday, March 27, 2011

दिल तेरी नजर की शह पाकर...

भोपाल की उर्दू शायरी की नुमाइंदगी करने वालों में एक नाम ताज भोपाली यानी सैयद मुहम्मद अली ताज का भी है। पतझर के इस मौसम में आम की मंजरियों की खुशबू की तरह असर करने वाली उनकी ये दो गजलें पढि़ए और अच्छे मूड में हों तो गुनगुनाइए भी...

एक
दिल तेरी नजर की शह पाकर मिलने के बहाने ढूंढे है
गीतों की फजाएं मांगे है गजलों के जमाने ढूंढे है।

आंखों में लिए शबनम की चमक सीने में लिए दूरी की कसक
वो आज हमारे पास आकर कुछ जख्म पुराने ढूंढे है।

क्या बात है तेरी बातों की लहजा है कि है जादू कोई
हर आन फिजा में दिल उड़कर तारों के खजाने ढूंढे है।

पहले तो छुटे ये दैरो-हरम, फिर घर छूटा, फिर मयखाना
अब ताज तुम्हारी गलियों में रोने के ठिकाने ढूंढे है।

दो
बहुत दिनों से नजर में है यार की सूरत
गमे-जमाना से लेकिन फरार की सूरत।

नजर तो आए कहीं से बहार की सूरत
निकालिए तो कोई ऐतबार की सूरत।

खुला हुआ है दरे-मयकदा दिलों की तरह
महक रही है फिजा जुल्फे-यार की सूरत।

हजार मरहले-जीस्त सामने आए
बदल-बदल के तमन्नाए-यार की सूरत।

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