साथ-साथ

Thursday, March 17, 2011

दोस्त कहते हैं कि पीकर भी न सच बोला करूं

मशहूर शायर कुमार पाशी के बारे में शानी ने लिखा है कि उर्दू की जदीद यानी आधुनिक शायरी में कुमार पाशी एक ऐसा अहम नाम है, जिसे छोड़कर जदीदियत की कोई भी बहस अधूरी और एकांगी होगी। पेश है पाशी की एक गजल-

गजल/कुमार पाशी

झूठ को आदत बना लूं मस्लहत ओढ़ा करूं
दोस्त कहते हैं कि पीकर भी न सच बोला करूं

जहर कितना भी हो बाहर की फजाओं में मगर
फिक्र में मिस्री भरूं इजहार को मीठा करूं

दिन में हंस-हंसकर मिलूं अपनों से भी गैरों से भी
रात को घर के दरो-दीवार से झगड़ा करूं

देख ले वो भी मेरे आंगन में फैली सुबह को
मर गया है जो मेरे अंदर उसे जिंदा करूं

साहिलों की रेत क्या देगी पता पाशी मुझे
उतरूं पानी में तो गहराई का अंदाजा करूं

1 comment:

  1. कुमार पाशी साहब को पढना एक नए अनुभव से गुजरने जैसा है...शुक्रिया उनका कलाम पढवाने के लिए...

    नीरज

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