साथ-साथ

Wednesday, March 9, 2011

बहुत कुछ बोल देती है यह नज्म

जिसे लोग देखते और महसूस करते हैं, उसके बारे में निदा फाजली की यह नज्म बहुत कुछ बोल देती है। बीते दौर का एक बयान है यह नज्म। वह जख्मी दौर, जो इतिहास में दर्ज हो चुका है और कुछ लोग आज भी इस फितरत में लगे हैं कि उसकी वापसी हो...

एक राजनेता के नाम/निदा फाजली

मुझे मालूम है!
तुम्हारे नाम से
मन्सूब हैं-

टूटे हुए सूरज
शिकस्ता चांद
काला आसमां
कर्फ्यू भरी राहें
सुलगते खेल के मैदान
रोती-चीखती मांएं

मुझे मालूम है
चारों तरफ
जो ये तबाही है
हुकूमत में
सियासत के
तमाशे की गवाही है

तुम्हें-
हिन्दू की चाहत है
न मुस्लिम से अदावत है
तुम्हारा धर्म
सदियों से
तिजारत था, तिजारत है

मुझे मालूम है लेकिन
तुम्हें मुजरिम कहूं कैसे
अदालत में
तुम्हारे जुर्म को साबित करूं कैसे

तुम्हारी जेब में खंजर
न हाथों में कोई बम था
तुम्हारे साथ तो
मर्यादा पुरुषोत्तम का परचम था।

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