साथ-साथ

Sunday, March 6, 2011

अपनी-अपनी मुंबई

जो मुंबई के बाहर रहते हैं और टीवी पर नजारा लेते हैं, उनमें बहुतों के लिए मुंबई दलाल स्ट्रीट लगती है तो बहुतों को फिल्मी दुनिया। लेकिन अभी दो दिन पहले जब टीवी के पर्दे पर बांद्रा के गरीबनगर को भस्मीभूत करने वाली आग की लपटें दिखाई पड़ीं तो मुंबई का एक और भी चेहरा नजर आ गया। अब मुंबई में ही रहने वाले विख्यात शायर निदा फाजली की इस शहर पर लिखी यह नज्म भी पढ़ लीजिए-

बम्बई/निदा फाजली

यह कैसी बस्ती है
मैं किस तरफ चला आया
फजा में गूंज रही हैं हजारों आवाजें
सुलग रही हैं हवाओं में अनगिनत सांसें
जिधर भी देखो
खवे, कूल्हे, पिंडलियां, टांगें
मगर कहीं-
कोई चेहरा नजर नहीं आता!

यहां तो सब ही बड़े-छोटे अपने चेहरों को
चमकती आंखों को, गालों को, हंसते होठों को
सरों के खोल से बाहर निकाल लेते हैं
सवेरे उठते ही
जेबों में डाल लेते हैं!

अजीब बस्ती है!
इसमें न दिन, न रात, न शाम
बसों की सीट से सूरज तुलूअ होता है
झुलसती टीन की खोली में चांद सोता है

यहां तो कुछ भी नहीं!
रेल और बसों के सिवा
जमीं पे रेंगते बेहिस समंदरों के सिवा
इमारतों को निगलती इमारतों के सिवा
ये कब्र-कब्र जजीरा किसे जगाओगे
खुद अपने आप से उलझोगे, टूट जाओगे
यहां तो कोई भी चेहरा नजर नहीं आता!
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खवे-कंधे, तुलूअ-उदय, बेहिस-चेतनाशून्य, जजीरा-द्वीप

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