साथ-साथ

Saturday, March 5, 2011

याद है...

चुपके-चुपके रात-दिन...गजल को गाकर गुलाम अली साहब ने खूब लोकप्रिय कर दिया है, लेकिन कुछ ही लोगों को पता होगा कि इसका शायर कौन है? यह गजल उर्दू के मशहूर कवि हसरत मोहानी की है। 1875 ई. में यूपी के उन्नाव जिले में मोहान में जन्मे सय्यद फजलुल हसन एक शायर, पत्रकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में हसरत मोहानी नाम से जाने गए। आजादी के बाद 1951 ई. में लखनऊ में उनका इंतकाल हुआ। मौलाना हसरत मोहानी सूफी थे और पक्के कृष्ण भक्त भी। यह जो आजकल बड़े अहमकाना तरीके से हिंदू-मुसलमान किया जाता है, तब के समझदार लोगों में बिल्कुल नहीं था। हसरत मोहानी तो खैर मथुरा-ब्रिंदावन की तीर्थयात्रा भी करते रहते थे। उन्होंने लिखा है-
मथुरा में भी कुबूल हो हसरत की हाजिरी
सुनते हैं आशिकों पे तुम्हारा करम है खास।

अब उनकी यह गजल भी पढ़ लीजिए-

चुपके-चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है
हमको अबतक आशिकी का वह जमाना याद है

खींच लाना वह मेरा पर्दे का कोना दफअतन
और दुपट्टे से तेरा वह मुंह छिपाना याद है

गैर की नजरों से बचकर सबकी मर्जी के खिलाफ
वह तेरा चोरी-छिपे रातों को आना याद है

आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं जिक्रे-फिराक
वह तेरा रो-रो के मुझको भी रुलाना याद है

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वह तेरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर रचना ।
    आपको जन्म दिवस की हार्दिक बधाई ।
    ईश्वर आपको दीर्घ आयू और स्वस्थ जीवन दे ।

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