साथ-साथ

Friday, March 4, 2011

सबसे पहले स्त्रियों को ही धन्यवाद!

1989 में छपे अपने पहले ही कविता संग्रह प्रार्थना के शिल्प में नहीं से चर्चित-प्रतिष्ठित देवीप्रसाद मिश्र अपेक्षाकृत लंबी कविताओं के कवि हैं। उनकी कविताओं में हमारे समय का संकट बहुत शिद्दत से महसूस किया जा सकता है। पढि़ए उनकी यह कविता-

एक मुलायम धरती के लिए /देवीप्रसाद मिश्र

हमें नदियां नहीं खोदनी पड़ीं
न ही हमारे पुरखों को
फिर भी वे थीं वे हैं

हवा को हम किसी कोटर से नहीं लाए
वह थी। वह है।

दूब हमने नहीं बोई
समुद्र को नीला रंग हमने नहीं दिया

जामुन कसैली हो
कैथा खट्ïटा
आम खट्ïटा या मीठा
अनन्नास खटमिट्ठा
महुआ मादक हो- इसके लिए हमने कुछ नहीं किया

बबूल को काला और युक्लिप्टस को सफेद
हमने नहीं बनाया
आल्प्स आकाश और अमीबा
काली मिट्ïटी, अफ्रीका और अंटार्कटिका
शिवालिक, और ब्रह्मपुत्र
सतलज और सरपत

बकरियां, तितलियां, तेंदुआ
सोयाबीन और पेंगुइन
नरकुल और सरसों के फूल
चील, चरागाह और अबाबील
तिल, मधुमक्खियां और भील
दजला, फरात, हाथीघास
अरहर, कास और कपास
टिड्डे, बछड़े, घोड़े और कौए हमने कुछ नहीं बनाए

संसार की बहुत अद्ïभुत और बहुत अच्छी चीजें हमने नहीं बनाईं
फिर भी वे थीं। वे हैं।

तो अब हमें जो करना है बहुत कम है
लेकिन आसान नहीं है
कि मकान और कब्र के लिए उतनी ही जगह मिले सबको
उतने ही सिक्के मिलें
उतनी ही तितलियां
शहद और शक्कर पर उतनी ही हकदारी हो सबकी

सबके हिस्से का सूखा और शीत और पतझड़ समान हो
समान हो सबका वसंत और हरापन

उतना ही इंद्रधनुष
उतना ही सन और उतना ही सूत
उतना ही अन्न और उतना ही अम्ल
उतना ही जल सबको मिले

मेरे छालों के लिए क्योंकि असंख्य छालों के लिए जरूरी हो गया है
कि रुई के फाहों की तरह मुलायम हो पृथ्वी की पीठ
क्योंकि सिर्फ इतने तक के लिए नहीं थी पृथ्वी
कि पैरों में नाल ठोककर हम दौड़ते रहें घोड़ों की तरह
क्योंकि डरावने सहवासों के लिए ही नहीं थी पृथ्वी
क्योंकि सिर्फ घुटनों में सिर डालकर औरतों के सुबकने
                                               के लिए ही नहीं थी पृथ्वी
जैसे शहर सिर्फ आत्महत्याओं के लिए नहीं बने थे

अब भी एक ऐसी पृथ्वी है जो बची रह गई है
सेनानायकों, सामंतों और साम्राज्यों से
दो महायुद्धों से, महलों और मकबरों से
जो लगता है बची रहेगी राजनीतिज्ञों और दीमकों से
तो धन्यवाद! जिनके कारण पृथ्वी पृथ्वी है उन्हें धन्यवाद
इसलिए सबसे पहले स्त्रियों को ही धन्यवाद

जो पृथ्वी को कच्चे घड़े और गर्भस्थ शिशु की तरह
सहेजते हैं उन्हें धन्यवाद

जो चाय की पत्तियां चुनते हैं सुखाते हैं
मनुष्य और पृथ्वी के ठंडे होने के विरुद्ध
जो आरंभिक कार्रवाई हैं
उन्हें धन्यवाद

जो सबसे अच्छी तरह से खेलते हैं और सबसे अच्छी तरह से
लड़ते हैं उन्हें धन्यवाद
विवियन रिचर्ड्स को धन्यवाद

जिसके कारण पृथ्वी अपनी धुरी पर नाचती है
जो पृथ्वी का ईंधन है
जिसका पसीना पेट्रोल की तरह महकता है
बस्तर के उस कबायली को धन्यवाद

इस पृथ्वी पर हम कुछ मुलायम हरकतें करना चाहते हैं
कुछ लीलाएं
जैसे प्यार।

जरूरी है प्यार और प्यार के लिए पृथ्वी पर थोड़ी सी जगह
बहुत थोड़ी जगह। दीया भर जगह।
जितनी दर्जी को कपड़ा सीने के लिए चाहिए
मोची को जूता बनाने के लिए

जैसे जमीन पर फिलिस्तीन थोड़ी सी जगह चाहता है
थोड़ी सी जगह हम भी अपने प्यार के लिए चाहते हैं

जरूरी है प्यार
जैसे दुनिया के ग्लोब पर फिलिस्तीन जरूरी है।

2 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर कविता धन्यवाद|

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  2. जन्म दिन की ढेर सारी बधाइयाँ ढेरों शुभकामनाएं

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