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Wednesday, January 26, 2011

एक अजीब दिन

वरिष्ठ हिंदी कवि कुंवर नारायण की यह छोटी सी कविता आज गणतंत्र दिवस पर प्रस्तुत है. इसका शीर्षक एक अजीब दिन क्यों है, यह बताने की जरूरत नहीं है - देश-प्रदेश का माहौल देखते हुए खुद ही समझा जा सकता है...
एक अजीब दिन / कुंवर नारायण
आज सारे दिन बाहर घूमता रहा
और कोई दुर्घटना नहीं हुई.
आज सारे दिन लोगों से मिलता रहा
और कहीं अपमानित नहीं हुआ.
आज सारे दिन सच बोलता रहा
और किसी ने बुरा न माना.
आज सबका यकीन किया
आज कहीं धोखा नहीं खाया.
और सबसे बड़ा चमत्कार तो यह
कि घर लौटकर मैंने किसी और को नहीं
अपने ही को लौटा हुआ पाया.

2 comments:

  1. घर लौटकर मैंने किसी और को नहीं
    अपने ही को लौटा हुआ पाया

    -ये तो गजब हो गया!!


    स्वपन तो नहीं है कहीं??

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