वरिष्ठ हिंदी कवि कुंवर नारायण की यह छोटी सी कविता आज गणतंत्र दिवस पर प्रस्तुत है. इसका शीर्षक एक अजीब दिन क्यों है, यह बताने की जरूरत नहीं है - देश-प्रदेश का माहौल देखते हुए खुद ही समझा जा सकता है...
एक अजीब दिन / कुंवर नारायण
आज सारे दिन बाहर घूमता रहा
और कोई दुर्घटना नहीं हुई.
आज सारे दिन लोगों से मिलता रहा
और कहीं अपमानित नहीं हुआ.
आज सारे दिन सच बोलता रहा
और किसी ने बुरा न माना.
आज सबका यकीन किया
आज कहीं धोखा नहीं खाया.
और सबसे बड़ा चमत्कार तो यह
कि घर लौटकर मैंने किसी और को नहीं
अपने ही को लौटा हुआ पाया.
एक अजीब दिन / कुंवर नारायण
आज सारे दिन बाहर घूमता रहा
और कोई दुर्घटना नहीं हुई.
आज सारे दिन लोगों से मिलता रहा
और कहीं अपमानित नहीं हुआ.
आज सारे दिन सच बोलता रहा
और किसी ने बुरा न माना.
आज सबका यकीन किया
आज कहीं धोखा नहीं खाया.
और सबसे बड़ा चमत्कार तो यह
कि घर लौटकर मैंने किसी और को नहीं
अपने ही को लौटा हुआ पाया.
घर लौटकर मैंने किसी और को नहीं
ReplyDeleteअपने ही को लौटा हुआ पाया
-ये तो गजब हो गया!!
स्वपन तो नहीं है कहीं??
फिर तो दिन सच में ही अजीब ही रहना था।
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगिंग कार्यशाला के चित्र
मीडियोकर्मियों को संबोधित करते हुए हिन्दी ब्लॉगिग कार्यशाला में अविनाश वाचस्पति ने जो कहा