साथ-साथ

Thursday, January 20, 2011

तुझको तो खबर होगी

दिलदारी और दिलेरी कोई दिल्लगी का काम नहीं है। ये दोनों चीजें देखनी हों तो फैज अहमद फैज की शायरी में देखिए। जिंदादिली और जीवट के भी वो बादशाह हैं। पढि.ए यह खूबसूरत गजल-

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल, कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएंगे, सुनते थे सहर होगी

कब जान लहू होगी, कब अश्क गुहर होगा
किस दिन तेरी शनवाई, ऐ दीदा-ए-तर होगी

कब महकेगी फस्ल-ए-गुल, कब बहकेगा मयखाना
कब सुब्ह-ए-सुखन होगी, कब शाम-ए-नजर होगी

वाइज है न जाहिद है, नासेह है न कातिल है
अब शहर में यारों की किस तरह बसर होगी

कब तक अभी रह देखे, ऐ कामत-ए-जानानां
कब हस्र मुअय्यन है, तुझको तो खबर होगी।

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