राजस्थान में कोटा के प्रताप नगर में रहने वाले महेंद्र नेह वरिष्ठ कवि व गीत-गजलकार हैं। वे समर्थ समीक्षक भी हैं। सच के ठाठ निराले होंगे और थिरक उठेगी धरती उनकी चर्चित कृतियां हैं। उनके काव्य की जन पक्षधरता विशेष रूप से रेखांकित करने योग्य है। बानगी के बतौर प्रस्तुत है यह कविता...
नया विहान/ महेंद्र नेह
नदियां कहीं भी बहती हों
दरख्त कहीं भी खड़े हों
शब्द किसी भी भाषा के हों
कीमतें सभी की अंकित हो चुकी हैं
वेबसाइट पर
कीमतें तय कर दी गई हैं
बशर्ते कीमतों का औचित्य
समय रहते समझा जा सके
और अपनी-अपनी कीमत पर
बिना किसी ना-नुकुर के सहमति के
अंगूठे लगा दिए जाएं
कीमतों का नया विहान आ गया है।
सुनहरी विदाइयों, कारखानों, दफ्तरों, खेतों में
सामूहिक हाराकीरी का
नया विहान आ गया है।
अपनी भव्यता और दिव्यता के साथ दिपदिपाता
नए साजों के साथ थिरकने का
सुनहरी विदाइयों और सामूहिक हाराकीरी पर
जश्न मनाने का
सगे-संबंधियों, भाइयों, दोस्तों
पड़ोसियों और महबूब को मिटते
उजड़ते हुए देखने का
रंगीन पृष्ठों और
सूचना तंत्र की कौतुकी दुनिया में
डुबकियां लगाने का
नया विहान आ गया है
कीमतें सभी की अंकित हो चुकी हैं
वेबसाइट पर।
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