साथ-साथ

Sunday, December 12, 2010

धूप में आंचल की तरह

कथाकार-कवि कृष्ण सुकुमार की रचनाएं प्राय: सभी प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित होती आई हैं। वे बहुपठित व बहुचर्चित रचनाकार हैं। तीन उपन्यास व दो कथा संग्रहों के अलावा उनकी गजलों की भी एक किताब छपी है। आईआईटी रूड़की में सेवारत कृष्ण सुकुमार की पढि.ए दो गजलें-

दो गजलें / कृष्ण सुकुमार

॥ एक॥
रास्ते, मंजिल, मुसाफिर, कुछ सफर में तय नहीं
क्या मिले क्या छूट जाए, कुछ सफर में तय नहीं

जो गुजश्ता वक्त ने अब तक दिए उसके सिवा
और कितने फल लगेंगे इस शजर में तय नहीं

चार बेटे हैं, बुढ़ापे की मगर यह कशमकश
हूं किसी की कैद में या अपने घर में तय नहीं

कद बढ़े तो कुछ भी करने के लिए तैयार हम
किस कदर गिर जाएंगे अपनी नजर में तय नहीं

हम नहीं अहमक गुजारें मुफलिसी में जिंदगी
किस तरह क्या-क्या कमाएं उम्र भर में तय नहीं

इक अधूरा ख्वाब क्या देखा नशा उतरा नहीं
अब रहेंगे और कब तक इस असर में तय नहीं

॥ दो॥
इक सघन छाया तले बीते हुए पल की तरह
जिंदगी की धूप में हैं ख्वाब आंचल की तरह

इस कदर झूठी दलीलों ने हिलाया पेड़ को
टूटकर सच गिर पड़ा इक अधपके फल की तरह

रीत जाते हैं किसी की चाह में हम जिंदगी
लौट आते हैं बरस कर एक बादल की तरह

ख्वाब में पानी पिएं तो प्यास बुझती ही नहीं
जिंदगी भी खूबसूरत है इसी छल की तरह

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