साथ-साथ

Monday, December 6, 2010

डर गया पानी

बहुत ही सहज-सरल भाषा में दो अच्छी गजलें माधव कौशिक की प्रस्तुत हैं। माधव जी चंडीगढ़ में रहते हैं। चर्चित कवि-गजलकार हैं।

दो गजलें/ माधव कौशिक

॥ एक॥
चटूटानों के जिगर से जल तो निकले
हमारी मुश्किलों का हल तो निकले

मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूं
ये रिश्तों की फंसी सांकल तो निकले।

शहर को चीरकर देखो तो यारो
शहर की कोख से जंगल तो निकले।

बिछड़ने का सताए गम तुम्हें भी
तुम्हारी आंख से काजल तो निकले।

मैं तपती धूप में मुरझा रहा हूं
किसी कोने से अब बादल तो निकले।

॥ दो॥
सोचता हूं किधर गया पानी
सबकी आंखों का मर गया पानी

अब नदी किसको मुंह दिखाएगी
देखकर प्यास डर गया पानी।

आग पानी में भी लगा डाली
ये करिश्मा भी कर गया पानी।

सिर्फ आंखों ने दी पनाह उसे
जाने किस-किसके घर गया पानी।

मुझसे मिलते ही उसके चेहरे का
क्या हुआ, क्यों उतर गया पानी।

टूटकर आंख से गिरा जब भी
जख्म सीने के भर गया पानी।

मैं किनारे खड़ा रहा लेकिन
मेरे सर से गुजर गया पानी।

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