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Wednesday, November 10, 2010

डर-डर कर जीने के खिलाफ

डर-डर कर जीने की आदत दरअसल एक किस्म की बीमारी ही है, जो आदमी को अनिश्चय की राह पर धकेलती है और निर्णायक  नहीं बनने देती। डर-डरकर जीने के खिलाफ पढि.ए फैज अहमद फैज की यह कविता और इस पर अमल कीजिए, निश्चय ही जिंदगी बेहतर हो जाएगी।

तुम अपनी करनी कर गुजरो/फैज अहमद फैज

अब क्यूं उस दिन का जिक्र करो
जब दिल टुकड़े हो जाएगा
और सारे गम मिट जाएंगे
जो कुछ पाया खो जाएगा
जो मिल न सका वो पाएंगे

ये दिन तो वही पहला दिन है
जो पहला दिन था चाहत था
हम जिसकी तमन्ना करते रहे
और जिससे हरदम डरते रहे
ये दिन तो कितनी बार आया
सौ बार बसे और उजड़ गए
सौ बार लुटे और भर पाया

अब क्यूं उस दिन की फिक्र करो
जब दिल टुकड़े हो जाएगा
और सारे गम मिट जाएंगे
तुम खौफ-ओ-खतर से दरगुजरो
जो होना है सो होना है
गर हंसना है तो हंसना है
गर रोना है तो रोना है
तुम अपनी करनी कर गुजरो
जो होगा देखा जाएगा

2 comments:

  1. तुम अपनी करनी कर गुजरो
    जो होगा देखा जाएगा
    सच्चाई को वयां करती हुई रचना , बधाई

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