साथ-साथ

Monday, October 25, 2010

इन सलाखों से टिकाकर भाल

1976 आजाद हिंदुस्तान में इमरजेंसी का साल था। इसके पहले 1974 के जेपी आंदोलन यानी संपूर्ण क्रांति आंदोलन में बाबा नागार्जुन  ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था और पटना से लेकर बनारस तक नुक्कड़ सभाओं में अपने खास अंदाज में कविताएं सुनाकर सत्ता की निरंकुशता पर प्रहार किया था। सो इमरजेंसी लगी तो कवि नागार्जुन को भी जेल में डाल दिया गया। उन दिनों की लिखी उनकी दो छोटी कविताएं पढि.ए...

इन सलाखों से टिकाकर भाल/ नागार्जुन
इन सलाखों से टिकाकर भाल
सोचता ही रहूंगा चिरकाल
और भी तो पकेंगे कुछ बाल
जाने किसकी/ जाने किसकी
और भी तो गलेगी कुछ दाल
न टपकेगी कि उनकी राल
चांद पूछेगा न दिल का हाल
सामने आकर करेगा वो न एक सवाल
मैं सलाखों में टिकाए भाल
सोचता ही रहूंगा चिरकाल

रहा उनके बीच मैं/ नागार्जुन
रहा उनके बीच मैं!
था पतित मैं, नीच मैं
दूर जाकर गिरा, बेबस उड़ा पतझड़ में
धंस गया आकंठ कीचड़ में
सड़ी लाशें मिलीं
उनके मध्य लेटा रहा आंखें मीच, मैं
उठा भी तो झाड़ आया नुक्कड़ों पर स्पीच, मैं!
रहा उनके बीच मैं!
था पतित मैं, नीच मैं!!

No comments:

Post a Comment