कवि विनोद दास की अयोध्या सीरीज से एक और कविता प्रस्तुत है। ये कविताएं उनके संग्रह वर्णमाला से बाहर में संकलित हैं, जो 1995 में किताबघर दिल्ली से प्रकाशित हुआ था।
----------------
अयोध्या
अभी भी उदार है
सरयू
उसी तरह हर लेती है थकान
यात्रियों की
दस्तक देने पर
दरवाजे थोड़ा ठहर कर सही
लेकिन खुलते हैं
लोग अब भी मिलते हैं
और दुश्मनों की तरह
हाथ नहीं मिलाते
रोककर पूछते हैं
बच्चों का परीक्षाफल
पान खिलाते हैं
चाय गुमटियों की बेंचों पर बैठकर
बतकही और बहस करते हैं
औरतें पड़ोसियों से आटा मांग लेती हैं
और आटा चक्की
गेहूं पीस देती है
और धर्म नहीं पूछती
अयोध्यावासी
अभी भी मिलनसार हैं
सिर्फ जब वे बात करते हैं
पता नहीं क्यों
कभी कभी
उनकी आवाज में
कुछ जली चीज की गंध आती है
और कुछ नहीं।
No comments:
Post a Comment