साथ-साथ

Thursday, September 16, 2010

अयोध्या को खुश देखना चाहता हूं

अयोध्या में बाबरी विध्वंस के साथ उतरी विभीषिका पर ढेर सारी कविताएं लिखी गई । कवि विनोद दास ने तो अयोध्या सीरीज के तहत कई छोटी कविताएं लिखी थीं। एक बार फिर अदालत से आनेवाले फैसले को लेकर अयोध्या चर्चा में है। पढि.ए यह कविता...
अयोध्या/ विनोद दास
अयोध्या में
कुछ न कुछ रोज टूटता है
और उद्वेगहीन अफसर
टेलीफोन पर कान लगाए
अदृश्य आदेशों के इंतजार में बैठे रहते हैं

अयोध्या में
इतना टूट चुका है
कि वहां अब जिधर देखो
सूराख ही सूराख है

कुछ दीवारों में
कुछ आत्माओं में

और इंजीनियर परेशान है

किसी न किसी तरह
वे भर देते हैं दीवारों के सूराख
लेकिन अपनी किसी किताब में उन्हें
आत्मा के सूराखों को भरने की तकनीक नहीं मिलती

अयोध्या की आत्मा के
पोर पोर रिस रहे हैं
और मैं जानता हूं
कि अयोध्या को एक अच्छे डॉक्टर की जरूरत है

मैं डॉक्टर नहीं हूं
लेकिन मेरे पास
प्रेम का एक फाहा है

रिसते जख्मों पर
मैं उसे रखना चाहता हूं

मैं अयोध्या को खुश देखना चाहता हूं।

2 comments:

  1. विनोदजी की यह यथार्थ-रचना फिलहाल बेहद प्रासंगिक बन गई है।


    बेहतर चयन... अरविंदजी शुक्रिया

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