साथ-साथ

Monday, September 13, 2010

सम्पूर्ण तिरस्कार के खिलाफ

सम्पूर्ण तिरस्कार अच्छा नहीं होता। इससे होता यह है कि ढेर सारी खराबियों के साथ कुछ बची-खुची अच्छाइयां भी अदेखी रह जाती हैं। असल में सम्पूर्ण तिरस्कार एक प्रकार की मूढ़ता ही है, जो विवेक और धैर्य पूर्वक खराबियों से अच्छाइयों को अलगाने की योग्यता नष्ट करता है। पढि.ए कवि विनोद दास की यह कविता...


दागी आलू / विनोद दास

छिलकों के साथ
मैं फेंकने जा रहा था
दागी आलू

वह आई
और उसने एक-एक करके चुन लिए
सब दागी आलू

फिर उसने काट कर अलग किया
उनका वह हिस्सा
जो सड़ा था

मैं शर्मिन्दा था
आलू का एक बड़ा हिस्सा अच्छा और बेदाग था

मुझे लगा
कितना कुछ अच्छा बचाया जा सकता है
इस तरह
इस पृथ्वी पर।

No comments:

Post a Comment