विनोद दास
प्रतिदिन
दफ्तर से विदा लेने से पहले
पारदर्शी केबिन की कुर्सी पर
वे अपने पुत्र के विराजने की कल्पना कर मुदित होते थे
और उसे पब्लिक स्कूल के देसी संस्करण में पढ़ाने के लिए
वापसी वेला में अक्सर सब्जी की कटौती करते थे
जब अफसर डांटता
तो वे डांट कुछ कम सुनते
अफसर की फररटी अंग्रेजी पर मुग्ध होकर
उसमें अपने पुत्र का चेहरा ज्यादा देखते थे
सत्ताइस बरस
सब्जी की कटौती देसी पब्लिक स्कूल को अर्पित करने के बाद
सत्ताइस बरस
अफसर की अंग्रेजी डांट धैर्यपूर्वक सुनने के बाद
सेवानिवृत्त पिता
सत्ताइस बरस बाद बांटना चाहते हैं
हाल ही में बने अपने अफसर पुत्र से मन की व्यथा
किंतु जब वे देखते हैं
उसका पाषाणवतू भावहीन चेहरा
उन्हें लगता है
वह एक पारदर्शी केबिन में बैठा है
और वे बाहर से बार-बार पूछ रहे हैं
मे आई कम इन सर
मे आई कम इन सर
और वह अपनी ऐनक ही ऊपर नहीं उठाता।
अच्छी पंक्तिया है .....
ReplyDeleteअच्छा लिखा है ....
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( बाढ़ में याद आये गणेश, अल्लाह और ईशु ....)
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