समकालीन कविता की दुनिया में विनोद दास एक जरूरी नाम हैं। बानगी के बतौर उनकी कुछ कविताओं के क्रम में पढि.ए यह कविता...
कटआउट/ विनोद दास
समूचा शहर उनके आदमकट कटआउट से पटा है
कार खिड़की से झांकते हुए
जब वे अपना कटआउट देखते हैं
उसकी विराटता और भव्यता के सम्मोहन में डूबकर
सिर्फ कृतिकार को नहीं
प्रायोजक को भी मन ही मन धन्यवाद देते हैं
कि जो खुद नहीं हैं
और होना चाहते हैं
उसमें वह सभी कुछ है
कटआउट के करीब
अपने सुदीर्घ जीवन में उनको पहली बार लगा
कि अपनी महत्वाकांक्षा से वे कितने छोटे हैं
फिर कटआउट छूने के लिए
वे बड़े होने लगे
पहले दृष्टि गई और चश्मा लगा
फिर दिल सिकुड़ा
अंतत: कम सुनाई पड़ने लगा
जनता चाहे अपनी तकलीफ बयान करती
या करती उनकी आलोचना
वे हाथ जोड़कर विनीत मुद्रा में
सिर्फ मुस्कराते रहते
गोया उनके धड़ पर
कटआउट का चेहरा चिपका दिया गया हो
अब यह उनकी स्थाई मुद्रा थी
और बदलती नहीं थी
मृतक के चेहरे की आखिरी मुद्रा की तरह।
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