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Wednesday, September 8, 2010

तसलीमा के व्यंग्य की दो-धार

तसलीमा नसरीन की कुछ कविताएं व्यंग्यात्मक हैं। ऐसी कविताओं का व्यंग्य जबरदस्त प्रहार करने वाला और तिलमिला देने वाला है। पढि.ए ऐसी दो छोटी कविताएं...

एक/ जीभ

अब आदमी आदमी की तारीफ नहीं करता।
घर में कुत्ता पालता है, दो-तीन धूसर बिल्लियां
आदमी अब कुत्ते के नहाने-खाने
बिल्ली के नाम-धाम, आचार-व्यवहार की
भरपूर तारीफ करता है।

अब सूत और पाट, कोयले और काठ के बारे में
गहरी बहस में मशगूल हो जाता है आदमी।
फिर भी अच्छा है,
इंट, पत्थर, काठ की तारीफ करके भी अगर
जीभ की फितरत बदल जाए!

दो/ सस्ती चीज

बाजार में इतना सस्ता और कुछ नहीं मिलता
जितनी सस्ती मिलती हैं लड़कियां।
वे आलता की एक शीशी पाकर मारे खुशी के
तीन दिन बिना सोए बिता देती हैं।

बदन में लगाने को दो साबुन
और बालों के लिए खुशबूदार तेल पाकर
इस कदर वश में आ जाती हैं कि उनकी देह का गोश्त निकाल कर
हफ्ते में दो बार हाट-बाजार में बेचा जा सकता है।
एक नथुनी पाकर वे सत्तर दिनों तक पांव चाटती रहती हैं
और एक साड़ी मिल जाने पर पूरे साढ़े तीन महीने तक।

घर का मरियल कुत्ता भी जरूरत पड़ने से भौंक उठता है
लेकिन सस्ती लड़की के मुंह में एक क्लिप लगा रहता है
- सोने का क्लिप।

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