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Friday, August 13, 2010

मुक्ति की मुश्किलों के बारे में

तसलीमा नसरीन ने अपनी कविताओं में नारी मुक्ति की मुश्किलों के बारीक से बारीक तंतुओं की पहचान की है। उनकी कविताएं आत्मानुभव की कविताएं हैं- आत्मने पद हैं और इसीलिए उनकी मैं शैली में बड़ी ताकत है। उदाहरण के लिए उनकी यह कविता...

डर / तसलीमा नसरीन

मुझे किसी ने पार नहीं होने दिया मैदान
जितनी बार मैं दौड़कर गई- आधी दूरी तक
अचानक पीछे से कपड़ा पकड़ कर खींचा उन लोगों ने
डराया-
सामने खंदक में पसर कर सोया हुआ है चीता
पीपल से लिपटा हुआ है पीला जहरीला सांप
मैं भोली लड़की, कितना रोई थी!

मैदान के उस पार थी रानी पोखर, गुलमोहर का बगीचा
मैदान के उस पार था सफेद कबूतरों का झुंड, तितलियां
मैदान के उस पार थे सफेद-सफेद
औचक नक्षत्र की तरह
दिखने वाले जुगनू

दैत्य और दानव की कहानी सुनते हुए सोई
स्वप्न में नीलरंगी पतंग के बदले
देखती रही चुड़ैल के पांव, दानवों का देश।
बड़ी होते-होते, अब कितनी बड़ी हो गई हूं!
फिर भी मुझे इत्ता-सा कमरा पार नहीं होने देते वे लोग
अब स्वप्न में नहीं, जागते हुए देखती हूं चंद्रबोड़ा सांप
देखती हूं कीड़े-मकोडे., राक्षसों के घर, जंगली भैंसे

घर से बाहर निकल कर मैं आकाश नहीं देख पाती।

1 comment:

  1. प्रतीकों के सहारे एक अप्रिय सच का खुलासा !

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