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Thursday, August 12, 2010

तसलीमा का आत्मसंघर्ष

कवयित्री-लेखिका तसलीमा नसरीन का आत्मसंघर्ष कितना गहन और कितना कठिन है, यह उनकी इस छोटी-सी कविता के मार्फत जाना-समझा जा सकता है...

मान-अभिमान

पास जितना आ सकी हूं, यह भी समझ लो
दूर उससे भी ज्यादा जा सकती हूं मैं।
जितना प्यार लिया है लपक कर
उससे भी ज्यादा निगल सकती हूं हिकारत।

औरत का जन्म और प्रतिभा का पाप लिए
हर रोज नियत चटूटान हटाकर चलती हूं।
अथाह निषेधों में डूबती-उतराती बहती हूं,
मेरा कौन है सिवा मुझ अकेले के?

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