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Tuesday, August 10, 2010

छिनाल कहे जाने के जवाब में तसलीमा की एक कविता

बहुचर्चित बांग्ला लेखिका तसलीमा नसरीन के गद्य से, खासकर उनकी आत्मकथात्मक पुस्तकों से बहुतेरे पाठक परिचित हैं। हालांकि तसलीमा मूलत: और प्रथमत: कवयित्री हैं और उन्होंने बहुत अच्छी कविताएं लिखी हैं। यहां दी जा रही तसलीमा की कविता को छिनाल कहे जाने के जवाब में पढ़ सकते हैं...

चरित्र/तसलीमा नसरीन

तुम लड़की हो,
यह अच्छी तरह याद रखना
तुम जब घर का चौखट लांघोगी
लोग तुम्हें टेढ़ी नजरों से देखेंगे।
तुम जब गली से होकर चलती रहोगी
लोग तुम्हारा पीछा करेंगे, सीटी बजाएंगे।
तुम जब गली पार कर मुख्य सड़क पर पहुंचोगी
लोग तुम्हें बदचलन कहकर गालियां देंगे।

तुम हो जाओगी बेमानी
अगर पीछे लौटोगी
वरना जैसे जा रही हो
जाओ।

4 comments:

  1. वक्त के लिए अच्छी जवाबी कविता है।

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  2. ab to ladki bhi ladko ko chedti hain....yeh gujre jamane ki baat ho gayi...ab ladki ko koi nahi chedta,kam se kam mahanagaroin me to yahi satya hai.....

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  3. विरोधी जी,
    आपने जो भी टिप्पणी की है, वह आपके अपने विचारों पर आधारित है। आपकी निजी राय है और उसे जाहिर करने का आपको पूरा अधिकार है। आपके प्रति पूर्ण सम्मान व्यक्त करते हुए कुछ प्रश्न करना चाहती हूँ, यदि अपना बहुमूल्य समय देकर उत्तर दें तो आभारी रहूँगी.
    1-आप महानगर में कब से हैं
    2-क्या आपके परिवार की महिलाएँ बस और ट्रेन में सफर करती हैं
    3- क्या आपको किसी लड़की या महिला ने छेड़ा है

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  4. मैं महानगर में पैदा हुई हूँ और अपने जीवन के बावन वर्ष यहीं बिताये हैं.यह सच है कि महानगर कोई जंगल नहीं, यहाँ केवल दरिंदे ही नहीं घूमते। लड़कियों और महिलाओं की स्थिति में भी काफी बदलाव आया है पर आज तक मुझे किसी सड़क या सार्वजनिक स्थल पर लड़कियों द्वारा छेड़ा जाता कोई निरीह पुरुष नहीं दिखा है। बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि आज भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिनकी मानसिकता में परिवर्तन नहीं आया। स्त्रियों पर टिप्पणी करते हुए वे यह भूल जाते हैं कि उन्हें इस संसार में लाने वाली भी एक स्त्री ही थी। किसी का चरित्र हनन कुछ लोगों का पसंदीदा शगल होता है। नारी का चीरहरण करने वाले को शायद इस बात का ध्यान नहीं रहता कि किसी के वस्त्रों के साथ-साथ वह अपने चेहरे और चरित्र को भी आवरणहीन कर रहा है। किसी नारी का शीलहरण करने से पहले बलात्कारी को स्वयं भी वस्त्रहीन होना पड़ता है। भले ही इसे वह अपनी मर्दानगी समझे पर यह दरिंदगी के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता। अगर यह मर्दानगी या पौरुष का प्रतीक होता तो ऐसे लोगों को धिक्कार नहीं मिलती, समाज के बाकी लोग उनसे कतराने की जगह उनकी प्रशंसा करते।

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