कभी आपने सोचा है कि तमाम दुष्टताओं के बावजूद आखिर अच्छाई बच कैसे जाती है? इस पहेली को सुलझाया है अपनी एक शानदार कविता में कवि बद्रीनारायण ने। यह कविता भरोसे की रोशनी बनकर अंधेरे में भी चमकती रहती है...
हिंस्र आत्माएं पहचान ली जाती हैं/बद्रीनारायण
लकड़ी में छुपे तो बढ़ई चीर देता है
लोहे में काटता है लोहार
सोने में गला देता है सोनार
हिंस्र आत्माएं पहचान ली जाती हैं
मिटूटी में छुपे तो कोड़ देता है किसान
दूध में हंस चीन्ह लेता है
काले घोड़े की नाल में सईस को
पहले हो जाता है भान
राजा के नग में बैठे तो
प्रजा जान जाती है
वजीर की बुद्धि में
जान जाते हैं सिपहसालार
घुसना मना है
हवा में
पानी में
पूरी दुनिया में उठती मिटूटी की गंध में
पुआल में छुपे तो
धौरा बैल जान जाता है
मौसम में छुपे तो घाघ
गाय के खुरों में घुसने पर वैद्यराज
टन्ना, कबडूडी, फुटबॉल में पहचान जाते हैं बच्चे
जहां भी जाती हैं हिंस्र आत्माएं
पहचान ली जाती हैं
पहचान ली जाती हैं तो
खदेड़ दी जाती हैं।
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