यह कविता भी कवि बद्रीनारायण की ही है-प्रार्थना की शैली में। अपनी इस शैली के कारण ही यह मार्मिक भी है और महसूस कर सकें तो इसमें बहुत बारीक किस्म का व्यंग भी है...
भैरवी भजन/बद्रीनारायण
मेरी अरज सुनो भगवान
उसे एक बेटा दिया, सात लोटे
मुझे सात बेटे पर एक लोटा
वह भी फूटा।
हे कृपानिधान
क्यों नहीं दी मुझे काठ की बीवी
उसमें इच्छाएं क्यों दीं
इतनी बारिश दी तो न चूनेवाला छप्पर क्यों नहीं दिया
इतनी ठंडक दी तो पूरा कपड़ा क्यों नहीं दिया
जितना मुझे दुख दिया, उतने आंसू क्यों नहीं दिए
हे समदर्शी, ऐसा क्यों किया
उसे धन दिया तो लालच क्यों दिया
दंभ क्यों दिया
हे प्रतिपालक,
खाली पेट को रोटी क्यों नहीं दी
दर्द दिया मुझे तो उसे दवा क्यों दी।
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