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Wednesday, July 28, 2010

बद्रीनारायण की निगाह में स्त्री

कविता में स्त्री की न जाने कितनी छवियां हैं। लेकिन पता नहीं कि वे स्वयं स्त्रियों को कितनी प्रिय-अप्रिय लगती हैं- बनावटी लगती हैं, खुशामदी या कि सचमुच जीवन के मर्म का उदूघाटन करने वाली। बहरहाल, एक कविता बद्रीनारायण की भी पढि.ए...

डरते-डरते

डरते-डरते मैंने जनम लिया
मेरे जनम पर नहीं बजीं बधाइयां
मुझे प्यार करना

मुझमें भोर की लाली
सांझ की हवा
मुझे प्यार करना

डरते-डरते मैंने पांच पार किए
डरते-डरते दस
डरते-डरते मैं बीस के दरवाजे पर खड़ी हूं
मुझे दगा मत देना

डरते-डरते मैं गुलदाउदी
डरते-डरते हजारा
मुझे संग ही रखना

डरते-डरते मैं बूढ़ी हो जाऊंगी
डरते-डरते मर जाऊंगी
मुझे-
डरते-डरते याद करना।

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