साथ-साथ

Monday, July 12, 2010

दो कवितायेँ परवीन शाकिर की

नृशंसता के पथरीले पठार पर जहां हर सफ़र लहूलुहान है, परवीन शाकिर की बहुतेरी कवितायें शीतल झरने की तरह फूटती हैं. अपनी कविताओं में बहुत सहेज कर उन्होंने कोमलता का एक ऐसा कोना सुरक्षित रखा है, जो तपते रेगिस्तान में हरी भरी क्यारी सरीखा जान पड़ता है. बानगी के तौर पर यहाँ उनकी दो कवितायें. पहली कविता है " अयादत " जिसका मतलब होता है - बीमार को देखने जाना. दूसरी कविता मौसम, बरसात को लेकर है. 
: : अयादत : :
पतझड़ के मौसम में तुझको
कौन से फूल का तोहफा भेजूं
मेरा आँगन खाली है
लेकिन मेरी आँखों में
नेक दुआओं की शबनम है
शबनम का हर तारा
तेरा आँचल थाम के कहता है
खुशबू , गीत, हवा, पानी और रंग को चाहने वाली लड़की
जल्दी से अच्छी हो जा
सुबहे-बहार की आँखे कब से
तेरी नर्म हंसी का रस्ता देख रही हैं.

: : मौसम : :
चिड़िया पूरी भीग चुकी है
और दरख़्त भी पत्ता पत्ता टपक रहा है
घोंसला कब का बिखर चुका है
चिड़िया फिर भी चहक रही है
अंग अंग से बोल रही है
इस मौसम में भीगते रहना
कितना अच्छा लगता है.

1 comment:

  1. शुक्रिया अरविन्द जी मेरी प्रिय लेखिका की नज्मे पढवाने के लिए

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