साथ-साथ

Thursday, July 8, 2010

नरेंद्र जैन की कविता : रंग आसमान से लिया

 रंग आसमान से लिया
राख, धूल और रक्त से लिया  रंग
कुछ आहट
प्रतीक्षा और खामोशी से

कविता के विचार से लिया रंग

कुछ रंग
बच्चे के पैरों की रफ़्तार से
एक बूँद
माथे से टपकते पसीने से

थोड़ा बहुत
गुजारे लायक
शब्दों से

रंग वहां भी रहे
जहां थापी जा रही थीं
हथेलियों में रोटियां
आखिरकार
कुछ रंग
भूख से लिया मैंने.

2 comments:

  1. खूबसूरत पोस्ट

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  2. रंग वहां भी रहे
    जहां थापी जा रही थीं
    हथेलियों में रोटियां
    आखिरकार
    कुछ रंग
    भूख से लिया मैंने. सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें

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