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साथ-साथ
Monday, July 5, 2010
नरेंद्र जैन की कविता : बांस
मृतक की अर्थी से लेकर
दीवार से टिकी इस सीढ़ी तक
यह बांस ही है
पुलिस की लाठी से लेकर
हाट में बज रही बांसुरी तक
यह बांस ही है
इस खुरदुरे कागज़ से लेकर
मर्तबान में रखे अचार तक
यह बांस ही है
कविता
नहीं हो पाई इतनी दुर्लभ
यह
बांस ही है .
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