आठवें दशक से अबतक नरेंद्र जैन की इतनी कवितायें आ चुकी हैं कि उनके कवि की एक मुकम्मल तस्वीर बनती है. और, एक वाक्य में कहें तो उनकी कविता दृश्य से शुरू होकर परिदृश्य तक जाती है. उनकी कविता में आसपास के जीवन और घटित होते हुए का रूप और चित्र नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण दृश्य उपस्थित होता है. नरेंद्र जैन के पास कस्बाई जीवन का गहन संवेदनात्मक अनुभव है, साथ ही दुर्लभ सरलता और साफगोई भी. उनकी कुछ कविताओं के क्रम में आज पढ़िए यह कविता---
हितकारिणी/नरेंद्र जैन
मुसाफिरों
यहाँ रहकर
कुछ दिन चैन से गुजारो
यहाँ रहो और अनुभव करो कि
यह भी एक घर हुआ
यहाँ बैठकर जलाओ चूल्हे
और टिक्कड़ खाओ
पढो कि लिखा है इस पत्थर पर-
" बनाई १९१० इसवी में
यह हितकारिणी धर्मशाला
पं. रामनारायण पुरोहित ने,
मरहूम दोस्त यार मोहम्मद द्वारा
दी गयी दान में वह जमीन
जिस पर की गयी निर्मित
यह हितकारिणी धर्मशाला "
मुसाफिरों, यहाँ
रहो
और रहने दो हिन्दुस्तान को
हिन्दुस्तान की तरह .
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