साथ-साथ

Monday, June 21, 2010

परवीन शाकिर की दो छोटी कविताएं

भाषा में सर्वाधिक  अर्थ सम्भावनाओं वाली विधा कविता ही है। पाकिस्तानी कवयित्री परवीन शाकिर की दो बेहद मर्मस्पर्शी छोटी कविताओं में देखिए कि कितने विराट अर्थ व्यक्त हुए हैं। खासकर गूंज कविता में उपस्थित बिम्ब तो लाजवाब है...

:: बुलावा ::

मैंने सारी उम्र
किसी मंदिर में कदम नहीं रक्खा
लेकिन जबसे
तेरी दुआ में
मेरा नाम शरीक हुआ है
तेरे होटों की जुम्बिश पर
मेरे अंदर की दासी के उजले तन में
घंटियां बजती रहती हैं

:: गूंज ::

ऊंचे पहाड़ों में गुम होती
पगडंडी पर
खड़ा हुआ नन्हा चरवाहा
बकरी के बच्चे को फिसलते देख के
कुछ इस तरह हंसा
वादी की हर दर्ज (दरार) से
झरने फूट रहे हैं

2 comments:

  1. ....बहुत सुन्दर!!!!

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  2. दोनो ही रचनायें गज़ब की हैं।

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